सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रदर्शित

मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

स्वतंत्रता दिवस: मेरी दृष्टि में

 सभी को स्वतंत्रता दिवस की भरपूर शुभकामनाएं देते हुए मैं हम सभी भारतवासियों के लिए आजाद भारत में जन्म लेने का सौभाग्य प्रदान करने के लिए ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ।

15 अगस्त, यह प्रत्येक वर्ष में सबसे महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इसी दिन के इंतजार के लिए हमारे कितने ही क्रान्तिकारी पूर्वजों ने अपने प्राणों की आहुति दी ताकि आने वाली पीढ़ी स्वतंत्र भारत में सांस ले सकें।इसके लिए मैं सभी क्रांतिकारी वीर सपूतों को जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया, का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं।

यह दिन हमारे लिए इस दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि वर्ष 1947 में यह दिन प्रथम बार आया था जब हमें हमारे अधिकार मिले, और हमें हमारे ही उन संसाधनों का उपयोग अपना विकास करने लिए करने का अवसर मिला जिनको हमारा होते हुए भी मुख्यत: 1757 से लेकर 1857 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी व उनके बाद अंग्रेजी सरकार अपनी इच्छाओं, अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए करती रही थी। यही वो दिन था जिस दिन से हमे हमारे प्रतिनिधियों के माध्यम से हमारे हित में नियम व कानून बनाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ था।

मैं आपको स्पष्ट करना चाहता हूं कि कानून तो इससे पहले भी बना करते थे और अंग्रेजी सरकार ने दुनिया में अपनी छवी बनाने के लिए भारत में न्याय व्यवस्था भी स्थापित की थी लेकिन इस सारी व्यवस्था का प्रयोग हमारे शोषण करने व हमारे अधिकार छीनने के लिए किया जाता था। अब किसी पाठक के मन में सवाल आया होगा कि ये सब कैसे होता था। तो मैं बताना चाहता हूं कि अंग्रेजी सरकार हमारे ही संसाधनों का उपयोग करने के लिए तथा हमारे अधिकार छीनने के लिए कानून बनाती व उन्ही की बनाई हुई न्याय व्यवस्था इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले को न्याय का नाम देकर दण्डित करती और अंग्रेजी सरकार के बनाए कानूनों पर मोहर लगाती थी और दुनिया भर में यह ढिंढोरा पिटा जाता कि हम भारतवर्ष का उद्धार कर रहे है।

इसी भ्रम का शिकार हमारे कुछ भाई-बंधु हुए जो अंग्रेजी सरकार के हितेशी थे। उसी विचारधारा के कुछ लोग आज भी है जो कहते हैं - काश अंग्रेज भारत में थोड़े समय के लिए और रुक जाते तो भारत आज विकसित व सभ्य राष्ट्र होता । उनसे में कहना चाहता हूं कि अमेरीका भारत से लगभग 200 वर्ष पूर्व आजाद हो चुका था और आज दुनिया का सबसे विकसित व ताकतवर देश माना जाता है। अगर अंग्रेजों के अधिक समय तक राज करने से अगर कोई राष्ट्र विकसित व सभ्य होता तो भारत को कम से कम अमेरिका से तो आगे होना चाहिए जहां पर(भारत में) अंग्रेजों का आधिपत्य सापेक्षत: अधिक रहा।

अब मैं एक विज्ञान का तथ्य देता हूँ कि विज्ञान का विकास मुख्यत: 17 वीं सदी से लेकर 19 वीं सदी तक हुआ तब तकनिकी का इतना दबदबा नहीं था क्योंकि तकनिकी विज्ञान पर ही आधारित होती है(जो विज्ञान के बाद विकसित होती है)। और चूंकि जिस समय अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया तब तक तकनिकी का अधिक विकास नही था और अंग्रेज़ी सरकार सभी संसाधनों का दोहन नहीं कर पायी। वहीं अगर अंग्रेज 20 वीं सदी के अंत तक भारत में और रह जाते तो वे भारत के उन सभी संसाधनों का दोहन कर चुके होते जिनका उपयोग हम आज करते हैं। और फिर इसकी भी संभावना कम थी कि समय रहते भारत को आजादी मिले, इसलिए उन महान वीरों को नमन करना चाहिए जिनके प्रयासों से हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं ।

इसके बाद एक बात और में स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जैसा मैंने पहले कहा - "अंग्रेजी सरकार द्वारा भारतीयों के शोषण के लिए बनाए कानूनों को उस समय की तथाकथित न्याय व्यवस्था के द्वारा मोहर लगाई जाती थी।" जबकि आज स्थिति विपरीत है। न्याय व्यवस्था स्थापित करने वाली न्यायपालिका व लोकतांत्रिक सरकार दोनों अलग-अलग संवैधानिक तंत्र हैं। अगर सरकार कोई गलत निर्णय लेती है तो न्यायपालिका के द्वारा उसे प्रतिबंधित कर दिया जाता है। और न्यायपालिका के द्वारा ही हमारे संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण किया जाता है।

इसलिए मैं आप सभी को संबोधित करते हुए कहना चाहता हूं कि आओ हम सब मिलकर ईश्वर को याद करते हुए भारत के उन वीर सपूतों को नमन करते हैं जिनके ही बलिदान के कारण हमें स्वतंत्रता दिवस मनाने का अवसर प्राप्त हुआ।



* अगली पोस्ट - मेवाड़ी माटी गो लाल 


टिप्पणियाँ

सबसे ज्यादा पढ़ी गई पोस्ट