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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

बलिदान

                 


AI द्वारा निर्मित बलिदान नामक कविता का शीर्षक चीत्र




ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी।

कहती हमको बारम्बार कि 

जग मलिन हुआ जाता,

उठा लो तुम ज्ञान पताका,

मिटा दो जग की मलिनता सारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,

ए वतन कैसे चुकाएं अपनी कर्जदारी।

भर गला कहते हम भी मां तुमको,

ओ मां!

इस पुत्र के लिए तुमने कितने कष्ट सहे

और अब भी सह रही हो पीड़ाएं,

परन्तु अब ऐसा न होगा,

किया जो आह्वान तुमने हमारा,

सोच रहे हम उनकी जो

नन्हें-नन्हें बालक कर रहे तेरी मिट्टी में क्रिड़ाएं,

प्रेम-मय, ज्ञान-मय रक्त मांग रही जिनकी धमनी- शिराएं,

जिनका ही होगा कल को तुम पर बसेरा,

हम उनकी तकदीर बदल देंगे,

तेरा संदेशा हम उनको कहेंगे,

गायेंगे वो तेरी महिमा प्यारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,

ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी।


Language - Hindi              POEM- BALIDAN 

                                        

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