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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों     


मुख्य कविता अनुभाग:


 हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो 

बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं

बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस 

कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो 

बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि 

बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो

"तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव "

मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों

हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो


शब्दार्थ:  

1.हिय/हियो - मन
2.घणो/घणी/घणा - ज्यादा/बहुत
3.बखत - समय/वक्त
4.स्याणो - समझदार
5.माईंमा - अंदर ही अंदर 
6.ओळ्युं - याद 
7.चीतर - चीत्र/फोटो
8.मांडणो - लिखना
9.कौतक -  कर्म


अर्थ अनुवाद:

यहां एक हिंदी कविता है जिसमें कवि अपने मनोभावों  को कुछ इस प्रकार व्यक्त करता है कि वह खुद असामंजस्य की स्थिति में है वह सोच रहा है  कि अपने मन को वह भोलेपन व समझदार में से कौन सी उपमा दे?

कवि कहता है कि तुमसे मिले बहुत वक्त हो चुका है और मैं तो अब तुम्हें भूल सा गया हूं।लेकिन मेरा मन अभी भी तुमको रोज याद करता है।कवि कहता है की मन की कोई सीमा नहीं होती इसलिए यह तुमसे रोज मिलने आता है।मन के इस विरुद्ध आचरण के कारण कवि असमंजस्य में है कि वह अपने मन को कैसी उपमा दे?

फिर कवि कहता है कि जब तुम्हारी याद आती है तो मैं उसे बात को भुलाना चाहता हूं, लेकिन मेरा मन अंदर ही अंदर तुम्हारे बारे में सोचता रहता है।यह भी कवि के विरुद्ध कवि के मन का एक आचरण है।इस कारण भी कवि असमंजस्य में है कि वह अपने मन को समझदार कहे या भोला?

कवि कहता है कि जब तुम्हारी याद आती है तो मेरी आंखों के सामने तुम्हारा चित्र होता है और तुम्हारे बारे में एक दो कविता तो मन से निकल ही जाती है।चूंकि कवि ऐसा करना नहीं चाहता है। इसलिए वह असमंजस्य की स्थिति में है कि वह अपने मन को समझदार माने या भोला।

कवि कहता है कि मैं रोज ईश्वर को याद करता हूं और उसी में लीन रहने का प्रयास करता हूं। लेकिन मेरा मन है कि तुम्ही में लगा है और रोज तुम्हारे ही सपने आते हैं इस कारण भी कवि असामंजस्य की स्थिति में है 

फिर कवि कहता है कि मैंने तुम्हें भूलने का बहुत प्रयास किया, लेकिन मेरा मन तुम ही में लगा रहता है और मैं तुम्हें भूल नहीं पा रहा हूं।यह भी कवि के विरुद्ध एक आचरण है जिस कारण कवि फिर से असामंजस्य कि स्थिति में पहुंच गया है।


कवि कहता है कि उसका मन कितना भोला है जो रोज उसे प्रेरित करता है कि तुम उसके पास जाओ, वह तुमसे जरुर मिलेगा और तुम उसे पाने का प्रयास करते रहो। वह एक न एक दिन तुम्हें मिल ही जाएगा। चूंकि कवि जानता है कि ऐसा संभव नहीं है।इस कारण वह इस सम्पूर्ण कवित् में असामंजस्य कि स्थिति में है।


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