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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों मुख्य कविता अनुभाग: हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...
प्रस्तुतकर्ता
पवन पाण्डर
मेवाड़ी माटी गो लाल
घणा ही राणा हुय्या
बण राणो प्रताप हुय्यो
घणकरा राणा पर भारी
बैरया पर जेउड़ी-जेउड़ी आंतो
आजादी खातर लड़ ज्यांतो ।
सुणगे नावं प्रताप
अकबर न चढ़ती ताव
ताव म धाण धुकता
बदन म पसीना छुटता
एकर हिम्मत करगे सेना भेजी
मेवाड़-सपुता इता कोजा कुट्या क
हळदीघाटी म भाज्या दूस्मीड़ा
ले-ले चप्पल हाता म ।
एकर ओरुं कुटिज्या
बैरिड़ा दिवेर म
बठ्यो गणो ही सीर पंपोळ्यो
बण दोनुं गेड़ां
अकबर साम कोनी आयो
बिन ठा हो क
राणो है मेवाड़ी माटी गो लाल
भायड़ा
घणी कोजी अदेड़ खाल
Language - Hindi Poem - Mevadi mati go lal
"भारत स्काउट का झंडा" कविता पढ़ें
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जय हो
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