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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों मुख्य कविता अनुभाग: हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...
प्रस्तुतकर्ता
पवन पाण्डर
फूल-भंवर
फूल-भंवर
परम प्रिये! पावन पुष्प परमानन्द पोषित ।
रश्मि रंगत ल्याव, समीर हिंडोला हिंडाव ।।१।।
रमा,रुद्राणी, रत्ती ज्युं रंगत चोखी-भली
लगत ज्यूं भव कूंज की कोमल कली ।।२।।
श्याम घटा घटी, लगी सावन की झड़ी ।
फुट पड़यो जोबनीयो, महक बरस पड़ी ।।३।।
महक स्यूं बहक पड़यो नवल छैल-भंवर।
गुन्जन करत हरदम मडराय रयो चहुं और।।४।।
फूल खिलत-फलत है, भंवर डुब्यो रस माहीं ।
मोह लग्यो भंवर स्यूं, भरी उमंग नस-नस माहीं।।५।।
उमंग री तरंग स्यूं चमक आई चांदणी ज्यूं।
चंदा सम चमक्यो पियो उणा री चांदणी स्यूं।।६।।
बसंत आयो पावणो कामदेव री संगत म
रमा ज्यूं रम गई सजना पिया गी रंगत म ।।७।।
बिरखा रो जोर घणो कोयल ज्यूं कूकी कामणगारी
पियो कुरळाय पसर गयो मोर ज्यूं देख सुरत प्यारी ।।८।।
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