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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

चाहत

 चाहत नामक हिंदी कविता का शीर्षक चीत्र



देखता हूं 

राहें मैं तेरी

आह मेरी 

मांगे बांह तेरी 

मन मेरा 

संगती चाहे तेरी

तूं ही तो 

है आशिकी मेरी

तूं ही 

है दिदार मेरा 

बस एक तूं 

ही श्रृंगार मेरा 

बस एक बार 

पुकार ले जरा

बस एक बार 

चाह ले जरा 

इंतजार में

हूं मैं खड़ा 

प्यार मे जबसे पड़ा।

बिन तेरे 

है सुबह सूनी 

है शाम सूनी

है मन भी सूना 

है तन भी सूना

आंखे चाहे मेरी

देखना तूझे

कान चाहे मेरे 

आहटें तेरी

चाहे मन मेरा 

कदमों संग तेरे 

कदमताल होगी

फ़िक्र है मूझे 

हमारी नई गृहस्थी की

बताओ तो सही 

इस सीलसीले में 

कब हमारी मुलाकात होगी।


"सावन की हूक" नामक कविता पढ़े

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