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सावन की हूक
सावन की हूक
मन मग्न म्हारो मीत म
प्राण पड़िया थारी प्रीत म
कोयल कुकी, मोर नाच्यो
भली बिरखा भई भव म
हर जीव घणा किलोळ कर
मग्न सब प्रकृति उत्सव म
मन मग्न म्हारो मीत म
प्राण पड़िया थारी प्रीत म ।
मग्न मनुज है प्रकृति संगीत म
मेर ही मुख पर छाई उदासी
थारी वाणी र बिन्या
भुण्डा लाग कोयल-मोर
विरह वेदना जाग उठी
देख बिरखां रो जोर
किलोळ म करुं किकर
लागी मनड़ा म फिकर
धीरे से दिल दहल गयो
हुग्यो मुखड़ो म्हारो मलीन
सोच पड़यो जद मन माहीं
सावण सरड़ाटा करतो गयो
रह गया दिन चार बण नहीं
नसीब मिलण रा समाचार ।
शब्दार्थ:-
1. बिरखा : बारिश
2.किलोळ : अत्यधिक खुशी व्यक्त करना
3.पड़िया : गिर चुका
4.बिन्या : के बिना
5.किकर : कैसे
6. हग्यो : हो गया
7. सरड़ाटा : जल्दी-जल्दी से
8. भुण्डा - अप्रिय/अभद्र
भाव अनुवाद :-
कवि अपने प्रेमी को कहता है कि मेरा मन तुम्हारी संगत में लग चुका है और मैं पूरी तरह से तुम्हारे प्रेम में गिर चुका हूं। यह बताते हुए वह प्रकृति के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहता है कि कोयला कुक रही है,मोर नाच रहे हैं,बारिश के कारण इस संसार में उत्सव का माहोल है और सभी जीव अलग-अलग करतब करते हुए इस उत्सव का आनंद लें रहे हैं।
इसके बाद कवि कहता है कि मनुष्य भी प्रकृति के इस रंग में रंग चुका है। जीवों की करतल ध्वनि जो प्राकृतिक संगीत का द्योतक है, मनुष्य उसमें मगन है। इस सम्पूर्ण संसार में मैं ही एक अभागा हूं जो उदास बैठा हूं, मुझे तुम्हारी वाणी और स्वरूप को अंगीकार किये बिना ये कोयल की बोली और मोर का नृत्य भी रसहीन जान पड़ता है। बारिश के कारण मेरे मन में हरकत की जगह विरह-वेदना जाग गई है ।
इसके आगे कवि कहता है कि यह सोचते हुए मेरे हृदय को धक्का सा लगा और मेरे चेहरे की हवाईयां उड़ गई है कि सावन का पूरा महीना बीत चुका है, बस चार दिन शेष रहे हैं और अभी तक तुम्हारे आने की कोई खबर नहीं लगी है।
सारांश:
इस कविता में कवि सावन के महीने में अपने प्रेमी के प्रति उत्पन्न होने वाले मनो भावों तथा अपनी मन:दशा का वर्णन करता है। उसे सावन के महीने में जब प्रकृति की छटा मन मोहने वाली तथा सौन्दर्य के चरम पर होती है तो ऐसे में अकेले जीवन व्यतीत करना मुश्किल जान पड़ता है। अर्थात् वह इस प्राकृतिक सौन्दर्य के असीम आनंद से भरपुर पलों को जीना तो चाहता है मगर जी नहीं पा रहा है। और इसी कारण वह अपने प्रेमी को इस कविता के माध्यम से यह संदेश दे रहा है कि सावन का लगभग पुरा महीना विरह में बीत गया, सिर्फ चार दिन शेष रहे हैं पर अभी तक तुम्हारे आने की कोई खबर नहीं है।
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