प्रदर्शित
छेड़
छेड़
मुख्य कविता अनुभाग:
अरे खेलडी अठै बेठ्यो
सोच करूं रे म तो
थारो संगड़ो कर ने
मोज करूंला रे म तो
मनड़ो म्हारो सुख पाव
जद संग थारो मिल ज्याव
जिण भांत तप्त तावड़़ कुरळातो जीयो
छांया पाय हरख ज्याव
अरे खेरड़ी अठै बेठ्यो
देखु रे म तो
ऊंचल डाळ बठी कोयल
हळकी हवा रो हिलोळो आयो
डाळो डोल्यो कोयल दुबकी
थोड़ी सरकी थोड़ी हरखी
डाळी हर पुन री छेड़ स्यूं
जिण भांत गोपी हरखी
कान्हा हर बासुरी गी छेड़ स्यूं
देख गे ग़नीमत
प्रितम प्यारे मन मेरो थिरक्यो
अरे खेरड़ी अठे बठ्यो
सोच लियो म तो मन माही
थुं कोयल बणीजे
हूंतो डाळ बणुला
अरे डोल-डोल हाल-हाल ने
थारे संगे छेड़छाड़ करुंला
शब्दार्थ:
भाव अनुवाद:
छेड़ का मूल अर्थ किसी भी वस्तु की तात्कालिक स्थिति मे कुछ परिवर्तन करना या परिवर्तन करने पर मजबूर करना या स्पष्ट तौर पर कहें तो अपना प्रभाव छोड़ना ही है
जैसे:- हवा के चलने पर पत्तों का हिलना, पक्षियों के चह-चहाने पर सुनने वाले के मन में शांति का भाव उत्पन्न होना, बांसुरी को बजाते समय हवा के कारण बांसुरी के छिद्रों के साथ क्रिया होना, या होठों के द्वारा बांसुरी पर होने वाली क्रिया इसी प्रकार हाथ की उंगलियों का बांसुरी के छिद्रों पर पड़ना अथवा मां के द्वारा बच्चों को झूला-झूलना आदि में कुछ इस तरह की क्रियाएँ हैं जो सामान्यत छेड़ में ही आती है और इनका उपयोग साहित्य में अलंकृत रूप में किया जाता है तो वहीं छेद की साहित्य विदा हो जाती है
इसके इसके अलावा भी जैसे बारिश आने पर मोर का नाचना, कोयल का बोलना हवा का चलना भी छेड़ के ही उदाहरण है इसी तरह कवि अपने मन की स्थिति तथा कल्पना के द्वारा इस तरह की छड़ का निर्माण करता है। और अपनी काव्य-शक्ति का प्रदर्शन करता है। अब हम सोच जानते हैं कि क्या छेड़ साहित्य की आधुनिक कला है या यह प्राचीन कला है ? तो छेड़ एक प्राचीन कला है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के शुरुआती समय से चलिए आ रही है।
छेड़ भारतीय शास्त्रीय संगीत व शास्त्रीय नृत्य की एक कला है। शास्त्रीय नृत्य में छेड़ को चेहरे के हाव-भाव से व्यक्त किया जाता है। वही शास्त्रीय संगीत में छेड़ को शब्दों के अलंकरण के माध्यम से दर्शाया जाता है।
साहित्य की इस कला में कवि शब्दों के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु के द्वारा किए जाने वाले कार्य या भावों को देखकर या महसूस करके दूसरे व्यक्ति के मन में भावों का उत्पन्न होना तथा उसकी और आकर्षित होना ही छेड़ की मूल विषय-वस्तु है। प्राचीन साहित्य में अधिकांश छेड़ भगवान श्री कृष्ण व राधा, भगवान श्री कृष्ण व रुकमणी तथा भगवान श्री कृष्ण व गोपियों पर आधारित है। जिसमें श्री कृष्ण के बांसुरी बजने पर राधा या गोपियों के मन में भावों का उत्पन्न होना । उसी प्रकार श्री कृष्ण के माखन चुराने पर गोपियों के मन में क्रीडा का उत्पन्न होना व श्री कृष्ण के साथ नृत्य करना, आदि । पर इसी प्रकार बाल रूप में भगवान श्री कृष्ण को देखकर माता यशोदा के मन में भावों का प्रवाह। श्री कृष्ण के बाल गोपाल रूप में हरकतों से माता यशोदा के चेहरे के भाव आदि। इसी प्रकार श्री कृष्ण के बांसुरी बजाने पर गायों का निश्चिंत होना। छेड़ अधिकांशतः किसी वस्तु या व्यक्ति से लगाव के कारण उत्पन्न होती है।
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