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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

किराए का मकान

 ‎मूल:

तेरी आंखो में थोड़ी शरारत है 

‎देखुं जो मैं तेरी आंखों में 

‎मन मेरा जोरों से मचलता हैं 

‎जा रहा होता हूं मैं किसी और काम से 

‎किसी और रास्ते पर मगर न जाने क्यूं हर बार 

‎तेरे पिछे मेरा रास्ता बदलता है।

‎रास्ते की अहमियत तो तूझे पता होगी 

‎कि हर एक रास्ता किसी न किसी मंजिल को जाता है 

‎मगर न जाने क्यूं मेरा हर एक रास्ता 

‎तेरे मकान की और जाता है।

‎मकान किराए पर बहुत मिलते हैं 

‎हैं आलिशान मकान हमारे मोहल्ले में भी

‎मगर तुम्हारे मोहल्ले के उस कच्चे कोठरी से 

‎मकान की बात ही कुछ और है 

‎जहां रात को चांद दिन में सुरज दिखे ना दिखे 

‎मगर हर वक्त ठीक सामने तुम्हारा चेहरा दिखता है।


अनुवाद:   

             यह एक हिन्दी कविता है जिसमें कवि ने एक प्रेमी(प्रितम) का अपनी प्रेमीका के मन व उसके स्वरूप(सरूप) के प्रति विचलन व्यक्त किया है। इसमें प्रेमी अपने अन्य कार्यों को छोड़कर सिर्फ अपनी प्रेमीका की ओर आशक्त है। वह हमेशा उसके पास रहना चाहता है। उसके मन बार-बार प्रेमीका की याद आने से हुक सी ऊठती है ।

 कवि कहता है कि हम सब जानते हैं कि प्रत्येक रास्ता किसी न किसी मंजिल को जरुर जाता है  और फिर व्यंग करता है कि इस कविता में वर्णित प्रेमी का तो हर रास्ता अपनी प्रेमिका के घर की ओर ही जाता है।फिर प्रेमी अपनी प्रेमिका के प्रति अपने भाव तथा उससे जुड़ी चीजों के प्रति लगाव व अपने लिए महत्व को स्पष्ट करते हुए कहता है कि हमारे यहां पर किसी भी चीज की कमी नहीं है जो चाहो मिल जाता है। हमारा तथा हमारे मोहल्ले के अन्य सभी मकान भी आरामदायक तथा आलिशान हैं , मगर मैं तुम्हारे घर के सामने वाले उस कच्चे मकान में रहता हूं जहां पर आरामदायक सुविधाएं तो नहीं है। वहां पर हवा, पानी व बिजली जैसी सुविधाएं भी आसानी से नहीं मिलती है। पर , हां सामने की खिड़की से तुम्हारा चेहरा अर्थात् तुम हर वक्त दिखाई देती हो।

             *   छेड़ कविता पढ़ें  *

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