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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

मिलन की आश


मिलन की आश नामक कविता का शीर्षक चीत्र


                       कब आओगे तुम?

                       लगी मिलन की आश

                      इंतजार मे खड़ा हूँ,

                      प्यार में पड़ा हूँ,

                     द्वार पर बैठा हूँ,

                     देख रहा राह,

                     लगी मिलने की चाह,

                     हवाएं चल रही,

                     चमक रहा सुरज,

                     वसंत का मोसम,

                     फाल्गुन का महीना,

                     दुभर लग रहा

                     यार अकेले जीना ।

                     अब आ भी जाओ,

                     इतना भी मत सताओ,

                     कहे देता हूँ, अभी

                     सुन लो मेरी पुकार,

                     अगर तुमने ना सुनी,

                     तो ऊपर वाला सुन लेगा,

                     फिर बैठे पछताओगे,

                     दुःख से भर जाओगे,

                     चाहत तो बहुत होगी,

                     मगर मिलन न होगा,

                     फिर कभी।

अनुवाद :-

यह विरह-वेदना से भरी हुई एक कविता है जिसमें कवि अपने मन की वेदना और प्रतीक्षा को शब्द दे रहा है। वह अपने प्रिय को याद करते हुए(जैसे वह उसी से अर्थात् अपने प्रियतम से ही बात कर रहा है।) कहता है कि वह बहुत समय से द्वार पर खड़ा है और उसकी आंखें आने-जाने वाले हर रास्ते को बार-बार देख रही हैं। हृदय में प्रेम का बंधन इतना गहरा है कि अब यह इंतजार असहनीय हो गया है। वातावरण भी उसकी व्याकुलता को और अधिक तीव्र बनाता है। हवा चल रही है, सूरज चमक रहा है, और वसंत अपने पूरे यौवन पर है। फाल्गुन का महीना लोगों के लिए आनंद और उत्सव लेकर आता है, लेकिन उसके लिए यह समय बोझिल और उदास कर देने वाला है, क्योंकि उसका प्रिय उसके पास नहीं है। जीवन अकेलेपन में कठिन और भारी लगता है। वह विरह-वेदना के उच्चतम आयाम से ग्रसित है।


‎वह बड़ी करुणा से अपने प्रियतम से कहता है कि अब तो आ भी जाओ, इतना भी मत सताओ अर्थात् प्रेम में इंतजार और वेदना तो होती है मगर तुम अब मेरे साथ ज्यादती कर रहे हो।  यह प्रतीक्षा अब यातना बन चुकी है जो उसका मानसिक शोषण कर रही है। वह कहता है कि अगर तुमने मेरी आवाज़ नहीं सुनी, तो ऊपर वाला अर्थात् अगर तुम मुझे नहीं मिले और मैं इसी तरह रोज विरह में धीरे-धीरे मरता रहा तो एक दिन ईश्वर मुझ पर दया करके अपने पास बुला लेगा । और जब ऐसा होगा तो परिस्थिति बदल जाएगी और उसके परिणामस्वरूप तुम्हें पछतावा होगा। तब तुम्हारे मन में मिलने की चाह तो रहेगी, पर समय निकल जाएगा और मिलन फिर संभव नहीं होगा। उस अवस्था में पश्चाताप और दुख ऐसा हो जाएगा जिसे सहना कठिन होगा। इस बात के माध्यम से कवि अपने प्रियतम को अपना हक जताते हुए कहना चाहता है कि मेरी संगती करने में तुम्हारी भी भलाई है।


‎इस प्रकार यह रचना केवल प्रतीक्षा का वर्णन नहीं है, बल्कि यह उस गहरी पीड़ा का चित्रण है, जो विरह से जन्म लेती है। मनुष्य जब अपने प्रियतम से दूर होता है, तो जीवन का हर सुख फीका लगने लगता है। ऋतुएँ और उत्सव जो सामान्यतः आनंद का कारण बनते हैं, वे ही उस समय ज्यादा दु:ख का कारण  बनते हैं। कवि का हृदय उसी विडंबना को सामने रखता है। उसकी व्याकुलता यह संकेत देती है कि प्रेम में मिला हुआ समय ही जीवन को पूर्ण बनाता है।


‎कुल मिलाकर यह भावोद्गार एक प्रेमी की पुकार है, जो अपने प्रियतम से मिलन की आश में व्याकुल है। यह केवल दो हृदयों के जुड़ाव की बात नहीं है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि समय रहते संबंधों को महत्व देना चाहिए, क्योंकि जब अवसर हाथ से निकल जाता है तो पछतावा शेष रह जाता है, और मिलन फिर कभी संभव नहीं होता।





          "चाहे जो हो जाए " कविता पढ़ें 








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