प्रदर्शित
मिलन की आश
कब आओगे तुम?
लगी मिलन की आश
इंतजार मे खड़ा हूँ,
प्यार में पड़ा हूँ,
द्वार पर बैठा हूँ,
देख रहा राह,
लगी मिलने की चाह,
हवाएं चल रही,
चमक रहा सुरज,
वसंत का मोसम,
फाल्गुन का महीना,
दुभर लग रहा
यार अकेले जीना ।
अब आ भी जाओ,
इतना भी मत सताओ,
कहे देता हूँ, अभी
सुन लो मेरी पुकार,
अगर तुमने ना सुनी,
तो ऊपर वाला सुन लेगा,
फिर बैठे पछताओगे,
दुःख से भर जाओगे,
चाहत तो बहुत होगी,
मगर मिलन न होगा,
फिर कभी।
अनुवाद :-
वह बड़ी करुणा से अपने प्रियतम से कहता है कि अब तो आ भी जाओ, इतना भी मत सताओ अर्थात् प्रेम में इंतजार और वेदना तो होती है मगर तुम अब मेरे साथ ज्यादती कर रहे हो। यह प्रतीक्षा अब यातना बन चुकी है जो उसका मानसिक शोषण कर रही है। वह कहता है कि अगर तुमने मेरी आवाज़ नहीं सुनी, तो ऊपर वाला अर्थात् अगर तुम मुझे नहीं मिले और मैं इसी तरह रोज विरह में धीरे-धीरे मरता रहा तो एक दिन ईश्वर मुझ पर दया करके अपने पास बुला लेगा । और जब ऐसा होगा तो परिस्थिति बदल जाएगी और उसके परिणामस्वरूप तुम्हें पछतावा होगा। तब तुम्हारे मन में मिलने की चाह तो रहेगी, पर समय निकल जाएगा और मिलन फिर संभव नहीं होगा। उस अवस्था में पश्चाताप और दुख ऐसा हो जाएगा जिसे सहना कठिन होगा। इस बात के माध्यम से कवि अपने प्रियतम को अपना हक जताते हुए कहना चाहता है कि मेरी संगती करने में तुम्हारी भी भलाई है।
इस प्रकार यह रचना केवल प्रतीक्षा का वर्णन नहीं है, बल्कि यह उस गहरी पीड़ा का चित्रण है, जो विरह से जन्म लेती है। मनुष्य जब अपने प्रियतम से दूर होता है, तो जीवन का हर सुख फीका लगने लगता है। ऋतुएँ और उत्सव जो सामान्यतः आनंद का कारण बनते हैं, वे ही उस समय ज्यादा दु:ख का कारण बनते हैं। कवि का हृदय उसी विडंबना को सामने रखता है। उसकी व्याकुलता यह संकेत देती है कि प्रेम में मिला हुआ समय ही जीवन को पूर्ण बनाता है।
कुल मिलाकर यह भावोद्गार एक प्रेमी की पुकार है, जो अपने प्रियतम से मिलन की आश में व्याकुल है। यह केवल दो हृदयों के जुड़ाव की बात नहीं है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि समय रहते संबंधों को महत्व देना चाहिए, क्योंकि जब अवसर हाथ से निकल जाता है तो पछतावा शेष रह जाता है, और मिलन फिर कभी संभव नहीं होता।
"चाहे जो हो जाए " कविता पढ़ें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें