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मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

मंच पर

      *मंच पर*

मैं खड़ा था मंच पर,

थी थोड़ी झीझक,था थोड़ा डर,

था मन में उत्साह भरा,

अंदर बहती ज्ञान गंगा

कहे अब निकलुं अब निकलुं,

सोच रहा था-

अपनी मीठी बातों से मार लुंगा बाज़ी।

पर हाय! रुठ गया ज़माना

देवता भी न थे राजी,

समझ गया मैं कि

चाहा इन्द्रासन पर मिला निंदासन है ।

अचानक कोंधा विचार मन में,

लगा ये तो मुझ पर लांछन हैं,

आज उसी को धोने आया हूँ।

सुनो अब अखण्ड घोषणा मेरी,

सुनने में अब ना करो देरी-

" अब ना कोई व्यभिचार होगा,

मन में बस एक ही विचार होगा,

भारत का बच्चा-बच्चा बोलेगा,

कहेगा कोई ऐसी-वैसी बात नहीं

सीधा अपना अन्तर्मन खोलेगा।"

तब तक मुझे भी ना होगा आराम

आओ मिलकर शुरू करें काम

बोलो जय सीयाराम।


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