सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रदर्शित

मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों

    मन को मुर्ख मानुं कि मानुं घणों स्याणों      मुख्य कविता अनुभाग:  हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो घणी बखत होयगी म्हूं तो लार छोड आयो  बण ईं मन गा है तेरकन रोज आणा-जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो तेरी बात आव जद म्हूं तो मुंड आडी आंगळी द्यूं बण ईं मन गो है माईंमा बड़बड़ाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो ओळ्यू आव ईसी क आंख्यां आडो चीतर दिस  कर हठ एक-आधी कवितावां तो मांड ही ज्याणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो नित नेम मेरो हरी भजन कर सोवणो  बण ईंगों काम नित रात्यूं तेरो सुपणौं ल्यावणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हूंतो कर घणा कौतक पराई कर दिधि  बण ईंगों करतब रोज साम्ही जाणों हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो हिय न भोळो जाणुं के जाणुं घणो स्याणो "तूं खड्यो हूर चाल, बा देख साम्ही आव " मेर कानां म ईंगो नित फुसफुसाणों हिय न भोळो जाणुं के ...

चाहे जो हो जाए

    *चाहे जो हो जाए *

चाहे गुड़ गोबर हो जाए, मगर 

प्यार हमारा ना कभी नफरत होगा।

चाहे चंदा ना रहे आसमां में,

या कि सूरज के नाभिक 

खो जाएं नभ में,

या कि चमकते सितारे 

सो जाएं गगन की गोद में,

मगर हमारे प्यार से प्रफुल्लित 

प्रकाश तो रहेगा हमेशा;

सर्दी-गर्मी रहे ना रहे, मगर 

वसंत को लेकर कामदेव 

प्यार हमारा देखने आते रहेंगे।

क्या पता कभी हम भी 

रहें ना रहें, मगर हमेशा 

प्यार में मग्न हो हम

हर एक महफ़िल में

 आते रहेंगे।



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

सबसे ज्यादा पढ़ी गई पोस्ट