फूल-भंवर


परम प्रिये! पावन पुष्प परमानन्द पोषित ।

रश्मि रंगत ल्याव, समीर हिंडोला हिंडाव ।।१।।


रमा,रुद्राणी, रत्ती ज्युं रंगत चोखी-भली

लगत ज्यूं भव कूंज की कोमल कली ।।२।।


श्याम घटा घटी, लगी सावन की झड़ी ।

फुट पड़यो जोबनीयो, महक बरस पड़ी ।।३।।


महक स्यूं बहक पड़यो नवल छैल-भंवर।

गुन्जन करत हरदम मडराय रयो चहुं और।।४।।


फूल खिलत-फलत है, भंवर डुब्यो रस माहीं ।

मोह लग्यो भंवर स्यूं, भरी उमंग नस-नस माहीं।।५।।


उमंग री तरंग स्यूं चमक आई चांदणी ज्यूं।

चंदा सम चमक्यो पियो उणा री चांदणी स्यूं।।६।।


बसंत आयो पावणो कामदेव री संगत म 

‎रमा ज्यूं रम गई सजना पिया गी रंगत म ।।७।।

‎बिरखा रो जोर घणो कोयल ज्यूं कूकी कामणगारी 

‎पियो कुरळाय पसर गयो मोर ज्यूं देख सुरत प्यारी ।।८।।




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